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Sunday 30 March 2014

निगम पाषर्द भी लोक सेवक

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निगम पाषर्द लोक सेवक की श्रेणी में आते हैं और भ्रष्टाचार निवारण कानून के तहत उन पर मुकदमा चलाया जा सकता है. 

शीर्ष अदलात ने कहा कि भ्रष्टाचार निवारण कानून, 1988 ने लोक सेवक की परिभाषा का दायरा बढ़ाने पर गौर किया और इसे लोक प्रशासन में शुद्धता लाने के लिये ही लागू किया गया है. 


न्यायमूर्ति चंद्रमौलि कुमार प्रसाद और न्यायमूर्ति जे एस खेहड़ की खंडपीठ ने कहा कि विधायिका ने लोक सेवकों में व्याप्त भ्रष्टाचार पर अंकुश पाने और इसके लिये दंडित करने के इरादे से लोक सेवक को विस्तृत रूप से परिभाषित किया है. इस तथ्य को ध्यान में रखते हुये जब अपीलकर्ता पाषर्द के मामले पर विचार किया जाता है तो भ्रष्टाचार निवारण कानून की धारा 2 (सी) के अंतर्गत उसके लोक सेवक होने में कोई संदेह नही है.

न्यायालय ने राजस्थान के बांसवाड़ा में 2000 में नगर पालिका के पाषर्द मनीष त्रिवेदी की अपील पर यह फैसला सुनाया. मनीष त्रिवेदी पर रिश्वत लेने का आरोप था और भ्रष्टाचार निवारण कानून के तहत दायर आरोप पत्र में उनका नाम था. उनका तर्क था कि पाषर्द के रूप में वह भ्रष्टाचार निवारण कानून के तहत परिभाषित लोक सेवक के दायरे में नहीं आते हैं.

न्यायाधीशों ने कहा कि इस मामले में भारतीय दंड संहिता की धारा 21 के तहत परिभाषित लोक सेवक की परिभाषा के दायरे में निगम पाषर्द या बोर्ड के सदस्य नहीं आते हैं लेकिन राजस्थान नगर पालिका कानून की धारा 87 की कानूनी व्यवस्था के तहत वे इसकी परिभाषा के दायरे में आते हैं.

मनीष त्रिवेदी एक व्यक्ति को खोखा आबंटित करने के लिये 50 हजार रूपए की रिश्वत मांगने और इसे स्वीकार करने के आरोपी हैं.

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