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Monday 31 March 2014

स्टाम्प कालाबाजारी-"कलेक्टर क्या करेगा? ....वो सब जानता है।"

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'

मैं आज 31.03.2014 को दोपहर में कलेक्ट्रेट जयपुर गया। बीस रूपये का स्टाम्प खरीदना था। दो स्टाम्प विक्रेताओं ने ये कहकर इंकार कर दिया कि उनके पास बीस रुपये का स्टाम्प नहीं है। अंत में एक बुजुर्ग महिला स्टाम्प विक्रेता ने बीस रुपये का स्टाम्प उपलब्ध होने की बात कही। उसको मैंने जरूरी विवरण लिखाया और मैंने बीस रुपये दिए तो वह बोली कि "तेवीस रुपये दीजिये।" मैंने कहा "तीन रुपये किस बात के, आपको तो सरकार से कमीशन मिलता है?" तो उसने तपाक से कहा कि "सरकार से मिलने वाले कमीशन से परिवार नहीं चलता, आपको तीन रुपये देने ही होंगे।" मैंने उसे फिर से स्पष्ट शब्दों में कहा कि "आप बेशक स्टाम्प नहीं दें, मैं तीन रुपये नहीं देने वाला।"



 स्थिति ऐसी निर्मित हो गयी कि बीस रुपये लेकर के ही मुझे स्टाम्प देना उसकी मजबूरी हो गयी थी, क्योंकि वह स्टाम्प के पीछे की ओर मेरे बताये अनुसार स्टाम्प खरीददार का विवरण लिख चुकी थी। इसलिये उसने बड़बड़ाते हुए मुझ से बीस रुपये लेकर स्टाम्प तो दे दिया, लेकिन साथ ही साफ शब्दों में कह दिया कि "आगे से मैं आपको कभी स्टाम्प नहीं दूंगी!" इस पर मैंने उससे कहा कि "मैं आपकी शिकायत कलेक्टर से करूँगा।" इस पर तनिक भी घबराये बिना वह तपाक से बोली-"कलेक्टर क्या करेगा? उसको सब कुछ पता है। वो सब जानता है।"

मुझे दुःख हुआ कि जिले के सबसे बड़े प्रशासनिक लोक सेवक की परिसर में (कलेक्ट्री में) जहाँ पर व्यथित और गरीब लोग दूर-दूर से अपनी फरियाद लेकर इन्साफ की आस में आते हैं, सरेआम और बेरोकटोक उन लोगों का कलेक्ट्री में ही कलेक्टर द्वारा नियुक्त लोगों द्वारा शोषण किया जा रहा है।

इससे पहले भी अनेक बार स्टाम्प विक्रेताओं से मेरी इसी बात को लेकर इसी प्रकार से बहस हो चुकी है और शायद आज उनमें से दो स्टाम्प विक्रेताओं ने मुझे बीस रुपये का स्टाम्प नहीं होने की बात कहकर इसीलिये टरका दिया। बड़े अफ़सोस की बात है-इस प्रकार तो स्टाम्प विक्रेता रोजाना लोगों से बहुत बड़ी राशी गैर कानूनी तरीके से वसूल लेते होंगे। इसलिये इस मामले में चुप रहना तो कतई भी उचित नहीं है। क्योंकि मैं तो स्वयं ही लोगों को ये कहकर प्रेरित करता रहता हूँ कि "बोलोगे नहीं तो कोई सुनेगा कैसे?"


अत: मैंने मैडम सुषमा अरोरा, एडीएम (रजिस्ट्रेशन एंड स्टाम्प), जयपुर से उनके मोबाइल : 9829388383 पर अपने मोबाइल : 9875066111 से 17.57 बजे आज ही बात की तो उन्होंने सकारात्मक तरीके से मेरी बात सुनी और मुझसे आग्रह किया कि "यदि लिखकर दे सको तो उन्हें कार्यवाही करने में आसानी होगी।" मैंने उनसे कहा कि "यदि वास्तव में कार्यवाही हो तो ही लिखकर दूँ, ऐसा ना हो कि मेरा पत्र फाइलों में दबकर रह जाए?" इस पर उन्होंने कहा कि "आप लिखकर तो दीजिये!"
यहाँ पर यह उल्लेखनीय है कि स्टाम्प विक्रेता सरकार से कमीशन प्राप्त करते हैं, इस कारण भारतीय दंड संहिता की धारा 21 की उप धारा 12 (क) के अनुसार (इस धारा का मूल पाठ इस प्रकार है-‘‘21. लोक सेवक-लोक सेवक शब्द उस व्यक्ति के द्योतक है हैं जो एतस्मिनपश्‍चात् निम्नगत वर्णनों में से किसी में आता है, अर्थात्-..........बारहवां-हर व्यक्ति, जो-(क) सरकार की सेवा या वेतन में हो या किसी लोक कर्त्तव्य के पालन के लिये सरकार से फीस या कमीशन के रूप में पारिश्रमिक पाता हो’’) लोक सेवक की परिभाषा में आते हैं और लोक सेवक के रूप में स्टाम्प विक्रेता का उपरोक्त कृत्य अर्थात वैध पारिश्रमिक (कमीशन) से अधिक पारिश्रमिक (कमीशन) प्राप्त करना भारतीय दंड संहिता की धारा 161 के अनुसार दोनों में किसी भी प्रकार के तीन साल तक के कारावास से दंडनीय अपराध है। 

यहाँ पर हमारे एक साथी का कहना है कि-"स्टाम्प विक्रेताओं को इतना कम कमीशन मिलता है कि यदि वे पूर्ण ईमानदारी से स्टाम्प बेचें तो उनको न्यूनतम दैनिक मजदूरी भी नहीं मिलेगी! और वे भूखे मरेंगे!" उनसे और उनकी ही जैसी सोच रखने वालों से मेरा साफ़ शब्दों में कहना है कि-यदि कमीशन से काम नहीं चलता है तो कौन कहता है कि वे स्टाम्प बेचने का कार्य करें? उनको अन्य कोई कार्य करना चाहिए! स्टाम्प विक्रेताओं के परिवारों को पलने के लिए व्यथित, मजबूर और निर्दोष नागरिकों का शोषण करने का रास्ता खोलना तो लोक कल्याणकारी राज्य में स्वीकार नहीं किया जा सकता! जो सरकार या प्रशासन अपने लोक सेवकों को इस प्रकार से लूटने की छूट देता है, वह खुद अपराध को बढ़ावा देता है।

अब मैं मैडम सुषमा अरोरा, एडीएम (रजिस्ट्रेशन एंड स्टाम्प), जयपुर को पत्र भी लिखकर भिजवा रहा हूँ। देखना है कि इन भ्रष्ट लोक सेवकों के विरुद्ध  क्या और किस प्रकार की कार्यवाही होती है?

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